रायपुर / छत्तीसगढ़ के आदिवासी बहुल इलाकों में रहने वाले बच्चों को तीरंदाजी का हुनर विरासत में मिला है। इसे साबित कर दिखाया है बिलासपुर के शिवतराई गांव के बाशिंदों ने। यहां के बच्चों ने अब तक राज्य और राष्ट्रीय स्तर की स्पर्धाओं में जीत का परचम लहराकर लगभग 135 मेडल जीते हैं।
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शिवतराई गांव में तीरंदाजों की लंबी कतार है। इनमें लड़कों के साथ-साथ लड़कियां भी शामिल हैं। गांव पहुचते ही आपकों बच्चों में तीरंदाजी के जनून का अहसास हो जाएगा। बच्चों के इस जुनून को निखारने का बीड़ा उठाया है, गांव के ही इतवारी राज ने। कोच इतवारी राज इन बच्चों को धनुर्विद्या का प्रशिक्षण देते हैं। भले ही संसाधनों का अभाव है, लेकिन तीरंदाजी सीखने वाले बच्चों को तो बस तीर चलाने के बाद उसके लक्ष्य पर पहुंचने का ही इंतज़ार रहता है।
पिछले कुछ वर्षों में इस गांव के बच्चों ने तीरंदाज़ी के क्षेत्र में पुरस्कारों की झड़ी लगा दी है। शिवतराई से हर साल राष्ट्रीय स्तर के तीरंदाज पैदा होते हैं। यहां के खिलाड़ियों ने राष्ट्रीय और राज्य स्तर की प्रतियोगिताओं उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिए राज्य में खेल के क्षेत्र में दिया जाने वाला सर्वश्रेष्ठ सम्मान महाराजा प्रवीरचंद भंजदेव पुरस्कार प्राप्त किया है। शिवतराई गांव को धनुर्धरों का गढ़ कहा जाता है। तीरंदाज़ी के क्षेत्र में इस गांव की अगुवाई को देखते हुए ज़िला प्रशासन ने भी बेहतर खेल सुविधाएं मुहैया कराने की पहल की है और दो महीने के भीतर शिवतराई गांव में तीरंदाज़ी अकादमी बनाने के निर्देश दिए हैं। उम्मीद हैं कि आधुनिक सुविधाएं मिलने के बाद शिवतराई गांव की खेल प्रतिभाओं में और भी निखार आएगा और छत्तीसगढ़ के इस छोटे से गांव से निकल ये दुनिया की खेल प्रतियोगिताओं में देश का परचम लहराएंगे। |