Monday, June 30, 2025
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गुरू पूर्णिमा है आज, जानें पूजा विधि और महत्व…

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गुरु के प्रति अपना आदर और सम्मान प्रगट के करने के लिए आषाढ़ महीने की शुक्ल पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा का त्योहार मनाया जाता है। इस बार यह गुरू पूर्णिमा आज 27 जुलाई, दिन शुक्रवार को है। गुरु पूर्णिमा के मौके पर हम आपको भारत के दस उन महान गुरुओं के बारे में बताने जा रहे हैं जिनका आदर न सिर्फ देवता करते थे बल्कि दानव भी उनसे शिक्षा ग्रहण करते थे।

तो आईए जानते है कौन है वो गुरु –

महर्षि वेदव्यास
प्राचीन भारतीय ग्रन्थों के अनुसार महर्षि वेदव्यास को प्रथम गुरु का दर्जा प्राप्त है। तभी तो गुरु पूर्णिमा वेदव्यास को समर्पित है। महर्षि वेदव्यास भगवान विष्णु के अवतार माने जाते थे। इनका पूरा नाम कृष्णदै्पायन व्यास था। महर्षि वेदव्यास ने ही वेदों, 18 पुराणों और महाकाव्य महाभारत की रचना की थी। महर्षि के शिष्यों में ऋषि जैमिन, वैशम्पायन, मुनि सुमन्तु, रोमहर्षण आदि शामिल थे। महर्षि वेदव्यास 8 चिरंजीवियों में एक है जो आज भी जीवित हैं।

महर्षि वाल्मीकि
रामायण की रचना महर्षि वाल्मीकि ने की थी। महर्षि वाल्मीकि कई तरह के अस्त्र-शस्त्रों के आविष्कारक माने जाते हैं। भगवान राम और उनके दोनो पुत्र लव-कुश महर्षि वाल्मीकि के शिष्य थे। लव-कुश को अस्त्र-शस्त्र चलाने की शिक्षा महर्षि वाल्मीकि ने ही दी थी जिससे महाबलि हनुमान को बंधक बना लिया था।

गुरु द्रोणाचार्य
महाभारत में धृतराष्ट्र और गांधारी के 100 पुत्रों और राजा पांडु के 5 पुत्र इनके शिष्य थे। द्रोणाचार्य एक महान धनुर्धर गुरु थे गुरु द्रोण का जन्म एक द्रोणी यानि एक पात्र में हुआ था और इनके पिता का नाम महर्षि भारद्वाज था और ये देवगुरु बृहस्पति के अंशावतार थे। अर्जुन और एकलव्य ये दोनो श्रेष्ठ शिष्य थे। अपने वरदान की रक्षा करने के लिए इन्होनें एकलव्य से उसका अंगूठा गुरु दक्षिणा के रुप में मांग लिया था। गुरु द्रोण देवगुरु बृहस्पति के अंशावतार थे। दुर्योधन, दु:शासन, अर्जुन, भीम, युधिष्ठिर आदि इनके प्रमुख शिष्यों में शामिल थे।

गुरु विश्वामित्र
विश्वामित्र महान भृगु ऋषि के वंशज थे। विश्वामित्र के शिष्यों में भगवान राम और लक्ष्मण थे। विश्वामित्र ने भगवान राम और लक्ष्मण को कई अस्त्र-शस्त्रों का पाठ पढ़ाया। एक बार देवताओं से नाराज होकर उन्होंने अपनी एक अलग सृष्टि की रचना कर डाली थी।

परशुराम
परशुराम आज भी जीवित गुरु है। धार्मिक मान्यता के अनुसार कलयुग में भी वह जीवित है। परशुराम जन्म से ब्राह्रमण लेकिन स्वभाव से क्षत्रिय थे उन्होंने अपने माता-पिता के अपमान का बदल लेने के लिए पृथ्वी पर मौजूद समस्त क्षत्रिय राजाओं का सर्वनाश कर डाला था। परशुराम के शिष्यों में भीष्म, द्रोणाचार्य और कर्ण जैसे योद्धा का नाम शामिल है।

दैत्यगुरु शुक्राचार्य
गुरु शुक्राचार्य राक्षसो के देवता माने जाते है उनका असली नाम शुक्र उशनस है। गुरु शुक्राचार्य को भगवान शिव ने मृत संजीवनी दिया था जिससे कि मरने वाले दानव फिर से जीवित हो जाते थे। गुरु शुक्राचार्य ने दानवों के साथ देव पुत्रों को भी शिक्षा दी। देवगुरु बृहस्पति के पुत्र कच इनके शिष्य थे।

गुरु वशिष्ठ
गुरु वशिष्ठ की गिनती सप्तऋषियों में भी होती है। सूर्यवंश के कुलगुरु वशिष्ठ थे जिन्होंने राजा दशरथ को पुत्रेष्टि यज्ञ करने के लिए कहा था जिसके कारण भगवान राम,लक्ष्मण,भरत और शुत्रुघ्न का जन्म हुआ था। इन चारों भाईयो ने इन्ही से शिक्षा- दीक्षा ली थी।

देवगुरु बृहस्पति

बृहस्पति को देवताओं के गुरु की पदवी प्रदान की गई है। देवगुरु बृहस्पति रक्षोघ्र मंत्रों का प्रयोग कर देवताओं का पोषण एवं रक्षा करते हैं तथा दैत्यों से देवताओं की रक्षा करते हैं। युद्ध में जीत के लिए योद्धा लोग इनकी प्रार्थना करते हैं।

गुरु कृपाचार्य

गुरु कृपाचार्य कौरवों और पांडवों के गुरु थे। भीष्म ने इन्हें पाण्डवों और कौरवों को शिक्षा-दिक्षा देने के लिए नियुक्ति किया था। कृपाचार्य अपने पिता की तरह धनुर्विद्या में निपुण थे। कृपाचार्य को चिरंजीवी होने का वरदान भी प्राप्त था। राजा परीक्षित को भी इन्होंने अस्त्र विद्या का पाठ पढ़ाया था।

जानें पूजा विधि और महत्व

शास्त्रों के अनुसार, आषाढ़ मास की पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा मनाई जाती है। इसे व्यास पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। साल 2018 में गुरु पूर्णिमा का पर्व 27 जुलाई को है। इस दिन चंद्रग्रहण भी है इसलिए पूजा का समय सीमित हो गया है। शुभ मुहूर्त में किस तरह पूजा करें और कैसे अपने गुरु का आभार प्रकट करें, जानें यहां…

गुरु को आभार व्यक्त करने का दिन
सनातन धर्म में गुरु से दीक्षा लेने की परंपरा रही है। लेकिन वर्तमान समय में यह बहुत ही कम लोगों तक सीमित रह गई है, जो लोग किसी भी विद्वान व्यक्ति को अपना गुरु मानकर उससे दीक्षा ग्रहण करते हैं, उनके लिए गुरु पूर्णिमा का विशेष महत्व होता है। अब गुरुकुल की जगह स्कूल और विद्यालयों ने ले ली है। ऐसे में टीचर्स ही हमारे गुरु हैं, हां आध्यात्मिक गुरु दूसरे भी हो सकते हैं। आज का दिन अपने आध्यात्मिक गुरु और टीचर्स को धन्यवाद करने का दिन है। जीवन जीने की कला सिखाने के लिए आभार व्यक्त करने का दिन है।

पूजा विधि
सनातन परंपरा में गुरु को भगवान से उच्च दर्जा प्राप्त है। क्योंकि भगवान तक पहुंचने की राह स्वयं गुरु ही दिखाते हैं। गुरु पूर्णिमा के दिन गुरु के चरण स्पर्श कर उनका आशीर्वाद अवश्य लें। इसके बाद श्रद्धा और क्षमतानुसार उन्हें गुरु दक्षिणा या उपहार भेंट में दें। आज गुरु का आभार व्यक्त करने के लिए वैसे ही तैयारी करें जैसे भगवान की पूजा के लिए करते हैं। प्रात: उठकर स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें और फिर गुरु को टीका लगाकर प्रसाद खिलाएं, आशीर्वाद लें और फिर भेंट दें।

क्यों कहते हैं व्यास पूर्णिमा
गुरु पूर्णिमा को व्यास पूर्णिमा इसलिए कहा जाता है क्योंकि यह दिन वेदव्यासजी की जन्मतिथि पर मनाया जाता है। ऋषि वेदव्यास जी ने ही मानव कल्याण के लिए वेदों को सरल बनाते हुए उनका विस्तार किया। व्यासजी ने 6 शास्त्रों और 18 पुराणों की रचना की। साथ ही इसी तिथि पर व्यासजी ने सबसे पहले अपने शिष्यों और मुनियों को शास्त्रों का ज्ञान दिया। इसी कारण इस तिथि को गुरु पूर्णिमा या व्यास पूर्णिमा कहकर पुकारा जाता है।

व्यास पूजा विधि
यदि आपके गुरु इस दुनिया में सशरीर नहीं हैं या आपने किसी को अपना आध्यात्मिक गुरु नहीं बनाया है, ऐसे में आप व्यासजी की पूजा कर सकते हैं। इसके लिए स्नानादि करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें। घर के पूजा स्थान या मंदिर में एक चौकी पर सफेद या केसरिया रंग का कपड़ा बिछाकर आटे से चोक बना लें। इसमें व्यासजी की मूर्ति रखें। यदि मूर्ति न हो तो आप वेद-पुराण या अन्य धार्मिक पुस्तकें रखकर उनकी पूजा भी कर सकते हैं। इसके बाद योग्य पंडितजी दान-दक्षिणा दें।

पूजा के लिए शुभ मुहूर्त
आज चंद्रग्रहण होने के कारण गुरु पूजन का कार्य दोपहर 2 बजकर 53 मिनट तक पूरा कर लें। इसके बाद 2 बजकर 54 से सूतक काल प्रारंभ हो जाएगा। सूतक काल में कर्मकांड और पूजा की मनाही होती है। इस समय केवल मानसिक जप करना शुभ माना जाता है।

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