नई दिल्ली / पूरी दुनिया में कोरोना बांटकर चीन मंदी और आंतरिक मुद्दों से जूझ रहा है. ताइवान और हांगकांग बगावती तेवर अपनाए हुए हैं. चीन को सबसे बड़ा डर लोकतंत्र से लगता है. ऐसे में अपने देश की जनता का ध्यान भटकाने के लिए वह युद्ध का माहौल निर्मित कर रहा है. अपनी विस्तारवादी नीति के चलते चीन अंतरराष्ट्रीय बिरादरी में काफी विरोध झेल रहा है. ऐसे में सवाल यह है कि क्या चीन अभी भारत से युद्ध का जोखिम ले सकता. जवाब है: नहीं. चीन ऐसा क्यों नहीं कर सकता, उसके पीछे की वजहों पर एक नजर:
सैन्य तैनाती:
एक युद्ध के दौरान किसी देश को ये चाहिए होता है कि वह फ्रंटलाइन पर अपनी सेनाओं को जल्द से जल्द पहुंचाए, और ये वो आखिरी काम है जो चीन अभी कर सकता है. चीन इस वक्त कई मोर्चे पर लड़ रहा है. इसकी जमीनी सेनाएं, नौसेना, युद्ध विमान सभी इस वक्त व्यस्त हैं. एक तरफ, चीनी लड़ाकू जेट ताइवान के हवाई क्षेत्र में घुसपैठ करने में व्यस्त हैं, वहां वो एकीकरण की लड़ाई लड़ रहा है. और दूसरी तरफ, चीन ने दक्षिण चीन सागर में अपने जहाज लगा रखे हैं, जो पानी और उसके द्वीपों पर अपना दावा मजबूत करने की कोशिश कर रहे हैं. अकेले दक्षिण चीन सागर में, बीजिंग फिलवक्त 6 देशों – ताइवान, वियतनाम, फिलीपींस, ब्रुनेई, इंडोनेशिया और मलेशिया के खिलाफ खड़ा है.
पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (PLA) कृत्रिम द्वीप बना रही है और यहां अभ्यास कर रही है. यही नहीं, चीन के संबंध अभी जापान के साथ भी खराब हैं. क्योंकि बीजिंग के जहाज हाल ही में जापानी जल सीमा में प्रवेश कर गए थे और ऐसा करते हुए जापान सातवां देश बन गया जिसके साथ चीन का जल विवाद हो. उसके बाद आता है हांगकांग और वहां लोकतंत्र समर्थक आंदोलन चल रहा है. भारत के साथ युद्ध करने का मतलब होगा हांगकांग से अपना ध्यान हटा लेना और बीजिंग ये नहीं चाहता कि वहां विद्रोह हो.
आंतरिक संघर्ष
चीन पहले से ही अपने घरेलू मामलों पर संघर्ष कर रहा है. चीन अभी भी तिब्बत पर अपने दावों को वैध बनाने की लड़ाई लड़ रहा है. बाहरी मंगोलिया के दोबारा एकीकरण की भी वकालत कर रहा है. इसके अलावा, चीनी सैनिक शिनजियांग में उइगर
मुस्लिमों के अभियोजन में लगे हुए हैं. और कहा ये भी जा रहा है कि बीजिंग में कोरोना वायरस की दूसरी लहर का भी खतरा है. क्या चीन इन सभी मोर्चों को छोड़कर भारत-चीन सीमा पर जा सकता है?
बजटीय मुद्दे
मान लीजिए, चीनी सैनिक इन मामलों से हटकर लद्दाख पहुंच भी जाते हैं, तो सवाल ये उठता है कि क्या चीन सरकार अभी युद्ध के लिए फंड दे पाएगी? 2020 की पहली तिमाही में चीन की जीडीपी 20.65 ट्रिलियन युआन (2.91 ट्रिलियन डॉलर) रही. उनकी जीडीपी साल दर साल 6.9 प्रतिशत कम हो रही है. केवल जीडीपी में ही गिरावट नहीं देखी गई है; अन्य देशों के साथ चीन के संबंधों में भी खटास दिख रही है, जिसकी वजह से कई उद्योग चीन से बाहर जा रहे हैं. वहां मैन्युफैक्चरिंग कम हुई है, और इसीलिए मांग में भी कमी है. आयात में 8.5 फीसदी की गिरावट हुई है.
कोरोना वायरस (Coronavirus) ने चीन की अर्थव्यवस्था को बुरी तरह प्रभावित किया है, और इसका नतीजा ये है कि लोगों की नौकरियां जा रही हैं और संघर्ष की स्थिति बन गई है. युद्ध शायद आखिरी चीज है जिसके बारे में चीन सोचेगा. हालांकि, बुरी बात तो ये है कि बीजिंग पहले से ही लड़ रहा है.
व्यापार युद्ध
चीन-अमेरिका के साथ व्यापार युद्ध कर रहा है. हालांकि आर्थिक रूप से युद्ध तो वो ऑस्ट्रेलिया के साथ भी लड़ रहा है. रिपोर्ट के अनुसार, अमेरिका के साथ व्यापार युद्ध में चीन को 2019 की पहली छमाही में 35 बिलियन डॉलर का नुकसान हुआ था. कंप्यूटर और ऑफिस मशीनरी सबसे ज्यादा प्रभावित हुए क्षेत्रों में से थे. भारत से लड़ने का मतलब होगा कि भारतीय बाजारों से भी हाथ धो बैठना, और अकेले निर्यात से 74.72 बिलियन डॉलर से ज्यादा का नुकसान उठाना.
भारत के साथ युद्ध का जोखिम नहीं लेने का एक और कारण भी है, वो है कर्ज में डूबे पाकिस्तान और विनम्र नेपाल को छोड़कर वर्तमान में चीन के पास सहयोगियों की कमी. जबकि दूसरी ओर, भारत को कूटनीतिक और सैन्य रूप से दुनिया की प्रमुख शक्तियों का समर्थन प्राप्त है. अगर चीन लद्दाख में हमला करता है तो उसे सभी मोर्चों से अलग कर दिया जाएगा और उसकी अर्थव्यवस्था बैठ जाएगी. चीन को कूटनीतिक रूप से अलग-थलग होने का खतरा है, और हो सकता है कि चीनी इस आघात को झेल न पाए.zeenews.com