कोरिया / छत्तीसगढ़ राज्य के कोरिया अंचल में ऐसे विभिन्न प्राकतिक पौराणिक ऐतिहासिक स्थल, पहाड़ और घने जंगल हैं जो मनमोहक हैं। यही वो बड़ी वजह हैं कि कोरिया जिले में हर वर्ष शैलानी बड़ी सख्या में घूमने जिले सहित अन्य जिले व प्रदेशों से आते हैं।
यहाँ की अमृतधारा जलप्रपात, झुमका, ऑक्सीजोन पार्क, नीलम सरोवर पार्क, रमदहा जलप्रपात, जगरनाथ मंदिर, चनवाड़ी ढांड मंदिर, हसदेव उदगम काफी प्रसिद्ध हैं।
आपको बता दे बालम पहाड़ घने जगंल क्षेत्र, पहाडि़यों तथा अपनी खूबसूरत उचाईयों और प्राकृतिक सुंदरता के लिये प्रसिद्व है।
यु तो छत्तीसगढ़ के कोरिया जिला स्थित बालम पहाड़ के बारे में बहुत ही कम लोग जानते हैं। लेकिन कुछ वर्षों में जो भी यहां प्राकृतिक सौदर्य का आनंन्द लेने आया वो बार बार आने लगा है और अब बालम पहाड़ की खूबसूरती धीरे धीरे अन्य जिलों और प्रदेशों में फैलते ही जा रही हैं।
बालम पहाड़ के बारे में स्थानीय जानकर व जिला पुरातत्व अधिकारी बताते हैं कि बालम पहाड़ का नाम कोड़िया राज्य के बालन्द राजा के नाम से पड़ा, पहाड़ पर आज भी गढ़ी के अवशेष मौजूद हैं, उस वक्त पत्थरों से गढ़ी बनाया जाता था। इसलिए इस स्थान को बालम गढ़ी कहा जाने लगा। राजा बालन्द के पास 700 फ़ौज हुआ करती थी, उनकी एक खास बात रही कि वह जोड़ा तालाब खोदवाते थे और जैसे ही तालाब खुदाई के बाद उस पर पानी आता था जिसे पी कर वो आगे निकल जाया करते थे, फिर आगे इसी कार्य को दोहराते हुए उन्होंने अपने राज्य में ऐसे अनगिनत जौड़ा तालाब बनवाए हैं। जो आज भी सोनहत,पटना,खड़गवां और बैकुण्ठपुर क्षेत्र में दिखाई देते है।
राजा बालन्द के बाद राजा रामानुज प्रताप सिंह भी वहाँ जाया करते थे और वहाँ रुका करते थे साथ ही शिकार करते थे।
गौरतलब हो कि बालम पहाड़ का खूबसूरत स्थल प्रदेश के सबसे बड़े गुरुघासीदास राष्ट्रीय उद्यान के एरिया में आता हैं, जो 1440.57 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है। जिसमें बाघ, तेंदुआ, नीलगाय सहित 32 प्रकार के वन्यजीव प्राणी विचरण करते हैं।
फिलहाल कोरिया के गुरु घासीदास राष्ट्रीय उद्यान और सरगुजा के तमोर पिंगला अभयारण्य को मिलाकर टाइगर रिजर्व बनाया गया है। इसमें पहली बार टाइगर रिजर्व का पूरा क्षेत्रफल आया। टाइगर रिजर्व के कोर जोन में 2 हजार 49 वर्ग किलोमीटर तथा बफर जोन में 780 वर्ग किलोमीटर का जंगल है। वहीं 2 हजार 829 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल टाइगर रिजर्व का हिस्सा होगा।
यह राष्ट्रीय उद्यान उन्नत पहाड़ों तथा नदियों से घिरा हुआ है। यहाँ साल, साजा, धावड़ा, कुसुम, तेन्दु, आंवला, आम, जामुन एवं बांस के वृक्षों के अतिरिक्त जड़ी-बुटियाँ आदि के भी पर्याप्त भंडार मौजूद हैं। इस अभ्यारण्य में बाघ, कोडरी, तेन्दुआ, गौर, चिंकारा, सांभर, भेडिया, उदबिलाव, चीतल,जंगली सुअर, नीलगाय, भालू, लंगूर, सेही, लोमडी, खरगोश, बंदर, जंगली कुत्ता, सियार आदि जानवर एवं मुर्गे, मोर, किंगफिसर,धनेश, महोख, बाज, चील, उल्लू, तोता, बगुला एवं मैना आदि पक्षी पाये जाते हैं।
इस राष्ट्रीय उद्यान में 35 राजस्व ग्राम हैं, जिनमें मुख्यतः पांडो, चेरवा, खैरवार, गोड़, अगरिया, जनजातियॉं निवास करती हैं। इन जनजातियों की मुख्य भाषा हिन्दी है।