Monday, June 30, 2025
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जिसने बनाया अलंकरण हैं ताम्रपत्र वहीं आज गुमनामी की जिंदगी जी रहा, राष्ट्रवति के हाथों 1970 में राष्ट्रीय पुरूस्कार से सम्मानित शिल्पकार सुखचंद

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विजय शर्मा की रिपोर्ट / 1970 में सम्मान के बाद लगातार शिल्पकला में निखार आता गया मगर सम्मान में नहीं अब पकड़ ली है खाट इस उम्मीद में जीते जी सरकार ले ले इस रास्ट्रीय शिल्पी की 

सुखचंद पोयाम विश्व प्रसिद्ध शिल्पकार स्व जयदेव बघेल के भी गुरू रहे  है

अनदेखी – सुखचंद के डिजाईन को राज्य सरकार ने अपना तो लिया लेकिन उचित आर्थिक मदद से उसे वंचित रखा  80 साल की उम्र हो चुकी आँखों से दिखना भी हुआ कम शिल्पकारो के लिए कोई सरकारी योजना नहीं फिर भी सरकार से मदद की आस लगाये है सुखचंद

कोंडागांव / राष्ट्रवति वी वी गिरी  के हाथों 1970 में राष्ट्रीय पुरूस्कार से सम्मानित शिल्पकार सुखचंद गुमनामी की जिंदगी में जी रहे है । राज्य गठन के बाद जसे भाजपा की सरकार ने सत्ता संभली वैसे ही छत्तीसगढ़ राज्योत्सव पर राज्यभर में विभिन्न विभागों व क्षेत्रों में उत्तृष्ट कार्य करने वालों को राज्य अंलकरण सम्मान से सम्मानित करने की योजना बनाई गई । पहली बार इस अंलकरण सम्मान देने सरकार ने देश के विभिन्न राज्यों से अलग-अलग विधाओं के शिल्पियों से अलंकरण का डिजाइन आमंत्रित किए । शिल्पियों ने राजय अलकरण सम्मान डिजाइन बनाकर प्रस्तुत किए । इसमें से राष्ट्रपति के हाथें 1970 में राष्ट्रीय पुरूस्कार से सम्ममानित शिल्पकार सुखचंद पोयाम दारा निर्मित ताम्रपत्र का डिजायन को फाइनल किया गया ।

राज्य स्थापना के बाद से शुरू हुआ राज्सोत्सव और इस दौरान दिए जाने वो राज्य अंलकरण देने की परंपरा से आज भी जारी है । लेकिन इस अलंकरण का डिजाइन करने वाले कोंडागांव निवासी शिल्पकार सुखचंद पोयाम गुमनामी की जिंदगी जी हे  । जबकि उनकी प्रतिभा को परखने हुए भारत सरकार ने वर्ष 1970 में ही श्रेष्ठ शिल्पी के राष्ट्रीय पुरूस्कार से नवाजा था । यही नहीं सुखचंद पोयाम ही विश्व प्रसिद्ध शिल्पकारस्व स्व जयदेव बघेल के भी गुरू रहे  है । सुखचंद पोयाम की इस डिायन को संस्कृति विभाग ने राज्य अलंकरण के रूप मेंअपना तो लिया लेकिन जो सम्मान और आर्थिक मदद पोयाम को मिलनी थी उसमें उसे वंचित रखा गया । राज्य अंलकरण सम्मान का मूल डिाइन बनाने वाले डिजाइन सुखचंद को लगातार तीन सालों तक अंलकरण बनने का काम दिया गया । इसके बाद से उन्हें भुला दिया गया । वर्तमान में उनकी पूछ परख संस्कृति विभाग में सरकार तौर पर लगभग खत्म हो गई । पोयाम ओर उनके परिवार में सम्मिलित तीन पीढ़ी के शिल्पकार केवल बाहरी शिल्प प्रेमियों के दिए जाने वाले कार्य में ही अपना जीवन यापन कर रहे है ।  इस समय पोयाम की उम्र 80 वर्ष से अधिक है ।

सुखचंद पोयाम । उन्होंने कहा कि 8 लोगों का परिवार  । सरकार को  कम से कम उन्हें 15 हजार की पेंसन देनी  चाहिए । अब शिल्प भी नहीं बना पाता हु परिवार्र का सारा बोझ मुझ पर।

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