चिरमिरी। नगरीय निकाय चुनाव की रणभेरी बजते ही चिरमिरी नगर निगम में सियासी तापमान चरम पर है। कांग्रेस और भाजपा ने अपने प्रत्याशियों की घोषणा कर दी है, लेकिन कांग्रेस में नामों के ऐलान के साथ ही जबरदस्त घमासान मच गया है।
पार्टी ने पूर्व विधायक डॉ. विनय जायसवाल को महापौर प्रत्याशी घोषित कर दिया, जिसके बाद कांग्रेस के कई कद्दावर नेता और कार्यकर्ता गहरे असंतोष में नजर आ रहे हैं। कांग्रेस के भीतर गुटबाजी और बगावत का बिगुल बज चुका है, और कई नेताओं ने पार्टी से किनारा कर निर्दलीय चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया है।
वंशवाद पर उंगली, कार्यकर्ताओं में नाराजगी
डॉ. विनय जायसवाल इससे पहले चिरमिरी से विधायक रह चुके हैं, और उनकी पत्नी कंचन जायसवाल भी महापौर रह चुकी हैं। ऐसे में पार्टी कार्यकर्ताओं में यह सवाल उठने लगे हैं कि आखिर हर बार महापौर या विधायक की कुर्सी जायसवाल परिवार को ही क्यों दी जा रही है? कांग्रेस के कई वरिष्ठ नेताओं और जमीनी कार्यकर्ताओं को उम्मीद थी कि इस बार नए चेहरे को मौका मिलेगा, लेकिन डॉ. विनय जायसवाल की उम्मीदवारी ने उनकी उम्मीदों पर पानी फेर दिया।
“टिकट नहीं तो बगावत सही” – कांग्रेस में खुलेआम असंतोष
जैसे ही डॉ. विनय जायसवाल का नाम कांग्रेस प्रत्याशी के तौर पर घोषित हुआ, वैसे ही पार्टी में असंतोष की लहर दौड़ गई। कई दावेदारों को यह उम्मीद थी कि पार्टी उन्हें टिकट देगी, लेकिन जब ऐसा नहीं हुआ, तो उन्होंने बगावत का झंडा बुलंद कर दिया। प्रेम शंकर सोनी, बबीता सिंह और बलदेव दास जैसे दिग्गज नेता अब निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़ने की तैयारी कर चुके हैं।
कांग्रेस के लिए दोहरी चुनौती, भाजपा को बैठे-बिठाए फायदा!
कांग्रेस की यह गुटबाजी और अंदरूनी कलह भाजपा के लिए संजीवनी साबित हो सकती है। भाजपा पहले ही कांग्रेस की आंतरिक लड़ाइयों का फायदा उठाती रही है, और इस बार भी ऐसा ही होता दिख रहा है। जब कांग्रेस कार्यकर्ता ही अपनी पार्टी के खिलाफ मोर्चा खोल रहे हैं, तो इसका सीधा लाभ विपक्ष को मिलेगा।
भाजपा ने अपने प्रत्याशी का चयन रणनीतिक रूप से किया है, और फिलहाल उनकी ओर से कोई खुली नाराजगी देखने को नहीं मिल रही। भाजपा नेता इस स्थिति का भरपूर फायदा उठाने के लिए पूरी तैयारी में हैं।
“कांग्रेस को घर संभालने की जरूरत” – राजनीतिक विश्लेषकों की राय
राजनीतिक जानकारों का मानना है कि अगर कांग्रेस ने समय रहते अपने बागी नेताओं को नहीं मनाया, तो इसका खामियाजा उसे चुनाव में भुगतना पड़ेगा। कांग्रेस पहले भी गुटबाजी और अंतर्कलह के कारण कई चुनाव हार चुकी है, और अगर इस बार भी यही रवैया जारी रहा, तो भाजपा की राह आसान हो जाएगी।
आगे क्या?
अब देखने वाली बात यह होगी कि कांग्रेस अपने असंतुष्ट नेताओं को मनाने में सफल होती है या नहीं। क्या कांग्रेस नेतृत्व कोई सुलह निकाल पाएगा, या फिर निर्दलीय उम्मीदवारों की बगावत पार्टी के वोटबैंक में बड़ी सेंध लगा देगी?
चिरमिरी की जनता अब इस सियासी नाटक के अगले अध्याय का इंतजार कर रही है। राजनीति में कुछ भी संभव है, और अंतिम फैसला जनता की अदालत में ही होगा।